Friday, September 11, 2009

77 साल पहले मिले थे तेल भंडार के संकेतAug 30, 09 SANCHORE

जयपुर : करीब 77 साल पहले ही राजस्थान के रेतीले धोरों में तेल के अथाह भंडार होने के संकेत मिले थे। लेकिन प्रदेश में पहली बार 15 अगस्त,1999 को बाड़मेर जिले के गुढामालानी क्षेत्र के पहले कुएं से तेल मिलने की जानकारी मिली जबकि दूसरे कुएं में तेल स्वत : निकल गया। इस कुएं से दो हजार बैरल प्रतिदिन की दर से तेल का परीक्षण सही पाया गया। इसके बाद काम आगे नहीं बढ़ पाया था। इसी दौरान ब्रिटिश कंपनी केयर्न एनर्जी ने शैल से तेल ब्लॉक में दस फीसदी की हिस्सेदारी की। यह हिस्सेदारी वर्ष 2000 में बढ़कर पचास फीसदी हो गई। केयर्न ने वर्ष 2001 में फिर से सर्वे का काम शुरू किया।
कंपनी को वर्ष 2001 में कोसूल के पास एक कुएं में तेल मिल गया। इसके बाद 2075 बैरल प्रतिदिन निकालना साबित हो गया। करीब चालिस मिलियन बैरल के इस तेल क्षेत्र का नाम सरस्वती रखा गया। इसके बाद फिर खोज हुई तो ग्राम नगर के पास तेल एवं गैस के भण्डार मिले। इसके 155 मिलियन बैरल तेल भण्डार का आंकलन किया गया। वर्तमान में भार के रेत में ओएनजीसी,ऑयल इंडिया ईएनआई, फोक्स एनर्जी, केयर्न इंडिया, एचपीसीएल, जिओ ग्लोबल, गेल, बिर्क बेक इन्वेस्टमेंट, रिलायंस इंडस्ट्रीज, जिओ पेट्रोल, आरएनआरएल, एचओईसी, मित्तल एनर्जी, जीएसपीसीएल, आरईएल आदि कंपनियां राज्य के 21 ब्लॉक में तेल खोज का काम कर रही है। केंद्र सरकार बीकानेर-नागौर बेसिन में कोल बेड मिथेन ब्लॉक तैयार कर बीडिंग प्रक्रिया के लिए प्रस्तावित कर रही है। केन्द्र ने बाड़मेर-सांचोर बेसिन के खाली क्षेत्र के ब्लॉक भी चिह्नित किए जा रहे हैं। आखिर तेल उत्पादन में राजस्थान का सपना पूरा होने जा रहा है। इसका 19 साल से इंतजार था।
वैसे तो ओएनजीसी 1956 से थार के टीलों में तेल-गैस की खोज कर रही है लेकिन वह कुछ क्षेत्रों में गैस के कुछ भंडार खोजने के अलावा बड़ी सफलता नहीं प्राप्त कर पाई। बाद में सरकार की उदारीकरण की नीति के तहत सरकार ने सरकारी व निजी कंपनियों की साझेदारी में तेल खोज करने की छूट दी तो तेल की खोज आगे बढ़ी और प्रदेश को अपने सपने पूरा करने की एक किरण नजर आई। 15 अगस्त, 1999 को बड़ी सफलता मिली जब थार की धरती में तेल खोज निकाला गया। खोज बढ़ती गई और तेल के कुएं मिलते रहे।
अंतत: शनिवार का वह दिन आ गया जब राज्य में तेल निकालने की शुरुआत हो गई। जानकारी के मुताबिक राज्य में सबसे पहले तेल मिलने की संभावना वर्ष 1932 में नागौर जिले के जायल कस्बे के पास हुई थी।
आजादी से पहले किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और नागौर में तेल खोज का मामला दबकर रह गया। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो वीएस पालीवाल ने बताया कि 1932 में ज्योलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अध्यक्ष एएस हेरन नागौर जिले के जायल कस्बे के पास लाइम स्टोन खोज रहे थे, तभी उन्हें खानों से निकलने वाले पत्थरों में केरोसीन की गंध का अहसास हुआ तो वे इन पत्थरों के कुछ नमूने लेकर चल गए। इन पत्थरों का परीक्षण किया गया तो पता चला कि पत्थरों में तेल लगा था। हेरन ने इस बारे में प्रशासन को जानकारी दे दी। किसी ने हेरन की रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया हालांकि अब प्रारंभिक सर्वेक्षण से यह पता चला है कि नागौर में भारी तेल के भंडार हैं। इन खोजों के बाद सभी को लगने लगा कि राजस्थान का भाग्य उदय होने वाला है। यह सही साबित हुआ और अब तक का सबसे बड़ा तेल क्षेत्र नगाणा-कवास क्षेत्र में मिल गया।
इसमें 45-110 करोड़ बैरल तेल भंडार होने का अनुमान किया गया है। इसमें से 20-25 करोड़ बैरल दोहन योग्य है। तत्कालीन केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री राम नाइक व तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने दस फरवरी 2004 को इस तेल क्षेत्र को राज्य के लिए मंगल मानते हुए इसका नाम 'मंगला' रखने की घोषणा की। केयर्न इंडिया ने एक बार फिर इतिहास लिख डाला जब बायतू के पास 13-47 करोड़ बैरल तेल का भंडार खोज निकाला। इससे 4-5 करोड़ बैरल तेल दोहन योग्य पाया गया। इसका नाम 'ऐश्वर्या' रखा गया। नगाणा के पास एक और कुआं खोजा गया जिसमें 4-5 करोड़ बैरल तेल का भण्डार मिला इसमें से 1-5-2 करोड़ बैरल तेल दोहन योग्य है।
बोथिया के पास 30 करोड़ बैरल तेल का भंडार मिला। इसमें से 6-7-5 करोड़ बैरल तेल दोहन योग्य है। इसे 'भाग्यम' नाम दिया गया। बाड़मेर में तेल के उत्पादन पर कुल साढ़े तीन डॉलर प्रति बैरल खर्चा आएगा। हालांकि केयर्न को तेल गुजरात तक भेजने में करीब डेढ़ डॉलर प्रति बैरल खर्च करने होंगे। केयर्न व तेल खरीदने वाली सरकारी कंपनियों के बीच तेल की कीमत पर सहमति हो गई है। केयर्न मंगलौर रिफाइनरी, इंडियन ऑयल व एचपीसीएल को ब्रेंड (नाजीरियल तेल) कच्चे तेल की दर पर 10-15 प्रतिशत की छूट देगी। ब्रैंड की दरें 71.23 डॉलर पहुंचने की उम्मीद है। असम के बाद राजस्थान में देश का सबसे बड़ा तेल भण्डार मिला है। मुंबई-हाई, गुजरात व आंध्र प्रदेश में तेल-गैस के भंडार समुद्र में मिले हैं। बाड़मेर के तेल क्षेत्र में अब 150 कुएं खोदे जा चुके हैं और अब 25 ज्यादा तेल भंडार मिले हैं। देश के कुछ घरेलू उत्पादन का करीब 25 फीसदी उत्पादन थार के टीलों से होगा। कच्चे तेल का उत्पादन शुरू होने के बाद देश को आयातित तेल पर हर साल 6.8 डॉलर विदेशी मुद्रा (327 अरब रुपए) कम खर्च करनी होगी। बाड़मेर में वर्ष 2011 में पूरी क्षमता से रोजाना 1.75 लाख बैरल उत्पादन होगा।